जानिए इस वजह से ये जानवर मार देते है अपने बच्चो को

मानव विज्ञानी  प्राइमेटोलॉजिस्ट सारा हर्डी अपनी बात प्रारम्भ करते हुए कहती हैं, “आम तौर पर आप किसी चुटकुले से व्याख्यान प्रारम्भ करते हैं, लेकिन शिशु-हत्या पर कोई चुटकुला नहीं.
कई लोगों को यह बात चौंकाने वाली लग सकती है, लेकिन स्तनधारी जानवरों में शिशु-हत्या सामान्य बात है. 289 स्तनधारी प्रजातियों के नये सर्वे में क़रीब एक तिहाई प्रजातियों में शिशु-हत्या के सबूत मिले हैं. कई बार जानवर अपने सामाजिक समूहों के युवा सदस्यों को मार देते हैं. कभी-कभी समूह की मादाएं दूसरी मादा के छोटे बच्चों को मारने का फ़ैसला करती हैं.
सामान्य है शिशु-हत्या अपने करियर की आरंभ में हर्डी ने लंगूरों में शिशु-हत्या पर रिपोर्ट बनाई थी. लंगूर बंदरों की एक प्रजाति है जो सारे एशिया में फैली हुई है. हर्डी की पहली रिपोर्ट के लगभग 40 वर्ष बाद, अब भी जानवरों में शिशु-हत्या पर चर्चा नहीं होती.
हत्यारी मां के बारे में बात करने से या उस पर चुटकुले बनाने से इंसान असहज हो सकते हैं, भले ही बात दूसरी प्रजातियों की हो. शायद हम इस तथ्य को बेहतर तरीका से समझ सकते हैं कि शिशु हत्याएं होती हैं. सवाल यह है कि ऐसा क्यों होता है?1970 के दशक में हर्डी की रिसर्च सामने आई तो वह बहुत विवादित हुई थी. वह कहती हैं कि पशुओं में शिशु-हत्या के विषय पर लौटने में वह अब भी कई बार ख़ौफ़ से भर जाती हैं. वह दक्षिण अमरीका में पेड़ों पर रहने वाले अफ्रीकी बंदरों (मर्मोसेट) का उदाहरण देती हैं.
गर्भावस्था में मर्डर का विचार गर्भावस्था के बारे में लोग यही सोचते हैं कि इस दौरान स्त्रियों के हार्मोन्स उनको बच्चों के प्रति सकारात्मक सोचने के लिए प्रेरित करते हैं  इस बात की आसार बढ़ाते हैं कि वह अपने साथ संबंध बनाएगी.
 लेकिन मर्मोसेट के मुद्दे में हक़ीक़त बहुत अलग हो सकती है. हर्डी कहती हैं, “जब मादा मर्मोसेट गर्भवती होती है  बच्चे को जन्म देने के लिए तैयार होती है तभी वह शिशु मर्डर के लिए सबसे ज़्यादा प्रेरित रहती है.” 2007 के एक अध्ययन में एक महीने के मर्मोसेट की मर्डर का उल्लेख किया गया था. समूह की मादा प्रमुख के बच्चे को दूसरी मादा मर्मोसेट ने मार दिया था.
उस मादा ने बच्चे को तब मारा जब वह गर्भवती थी. बाद में उसने दो जुड़वां बच्चों को जन्म दिया  समूह की नेता बन गई. यह सोच-समझकर की गई मर्डर लग सकती है. हत्यारी मां का यह कदम उसके अपने बच्चों के सुनहरे भविष्य को सुरक्षित करने के लिए भी होने कि सम्भावना है. यह पशु साम्राज्य की पीढ़ीगत पॉलिटिक्स है. अच्छा उसी तरह जैसे ‘गेम ऑफ़ थ्रोन्स’ की रानी सर्सी अपने प्रतिद्वंद्वी नेड स्टार्क के बच्चों को मरवा देने के लिए बेचैन रहती है ताकि शासन पर उसके परिवार की पकड़ मज़बूत रहे.
भविष्य की योजना जानवरों में कुछ “सहयोगी प्रजनक” भी होते हैं जो बच्चे के पालन-पोषण में बराबर की जिम्मेदारी उठाते हैं. हर्डी का बोलना है कि दशा अनुकूल न होने पर वे कुछ अनर्थकारी विकल्प भी चुन लेते हैं. अगर उनको लगता है कि अभी उनकी संतानों की ठीक से देखभाल नहीं हो पाएगी तो वे उनकी मर्डर करने का भी फ़ैसला कर लेते हैं. वे इस उम्मीद में रहते हैं कि दशा अनुकूल होने पर वे फिर से बच्चे पैदा कर लेंगे. मोंटेपेलियर यूनिवर्सिटी की एलिस हचर्ड कहती हैं, “मादाएं भी नर की तरह प्रतिस्पर्धी हो सकती हैं.” “वे उन संसाधनों के लिए होड़ करती हैं जिनकी उनके बच्चों के पालन-पोषण में ज़रूरत पड़ती है.
संसाधनों पर कब्जे की लड़ाई कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के डायटर लुकास के साथ हचर्ड ने हाल ही में स्तनधारी जानवरों में मादा शिशु-हत्या पर एक रिपोर्ट तैयार की है. उनकी रिपोर्ट की समीक्षा अभी तक नहीं हुई है, लेकिन इससे स्तनधारी समुदायों में हत्यारी माताओं की व्यापकता को समझने में मदद मिलती है.
 289 प्रजातियों में से 30 प्रतिशत प्रजातियों में शिशु-हत्या के मुद्दे पाए गए. हचर्ड का बोलना है कि दूसरे के बच्चों को मारना ज़िंदगी की सच्चाई है. जब भी मादाओं को इसके फायदे दिख रहे हों, तब वे ऐसा कर देंगी. हचर्ड  लुकास को लेम्यूर (मैडागास्कर में मिलने वाले बंदरों की एक प्रजाति), सील, सी लायन, भालू, बिल्ली, चमगादड़, चूहे  गिलहरियों में शिशु मर्डर के उदाहरण मिले. शिशु-हत्या साफ तौर पर किसी एक समूह या निवास-स्थान तक सीमित नहीं थी, लेकिन कई मामलों में उनमें जरूरी संबंध थे.
बच्चे की मर्डर क्यों कोई मादा जानवर किसी शिशु की मर्डर कर दे, इसकी आसार को तीन अहम कारक प्रभावित करते हैं- सख्त वातावरण में निवास, मातृत्व जिसमें मादा के लिए विशेष रूप से बहुत ज़्यादा ऊर्जा ख़र्च होती है  संसाधनों के लिए उच्च प्रतिस्पर्धा. जब इस तरह के दबाव चरम पर पहुंच जाते हैं तो माताएं मर्डर करने के लिए तैयार हो जाती हैं.
 हर्डी इस अध्ययन से प्रभावित हैं, हालांकि वह सवाल करती हैं कि इसमें इंसानों को क्यों शामिल नहीं किया गया. उन्होंने मनुष्यों में भी शिशु-हत्या का अध्ययन किया है. वह बताती हैं कि हमारे समाज में बच्चे के शुरुआती दिनों में स्त्रियों को सामाजिक स्तर पर बहुत योगदान मिलता है. अगर यह योगदान न हो तो मां के अपने बच्चों की उपेक्षा करने की आसार बढ़ जाती है.यहां तक कि वह उनकी मृत्यु को भी मंजूर कर लेती हैं.
सामाजिक समर्थन हो या सख्त वातावरण में पर्याप्त भोजन तक पहुंच, शिशु मर्डर एक काला किंतु विकासवादी लक्षण लगता है. संतानों की उचित देखभाल  लालन-पालन के लिए माताएं कई बार अपने बच्चों पर या पड़ोस के बच्चों पर भी टूट पड़ती हैं. जो सबसे योग्य होगा वह बचेगा “सर्वाइवल ऑफ़ द फिटेस्ट” यानी योग्यतम की उत्तरजीविता एक मुश्किलसिद्धांत है.
मातृत्व के दिनों में भी यह सिद्धांत लागू रहता है, भले ही मातृत्व के बारे में हमारी सांस्कृतिक अवधारणाएं कुछ भी कहती हों. कुदरत में हर स्थान माताओं को पता होता है कि उन्हें कब क्या चुनना है. यदि पड़ोस के बच्चे के मरने से उनके अपने बच्चे का भविष्य बेहतर होता हो तो वे इसके लिए तैयार रहती हैं. शुक्र है कि इंसानों में ज़्यादातर लोग अपनी प्रजाति में इस जानलेवा व्यवहार का समर्थन नहीं करते. लेकिन हमें यह निश्चित रूप से मानना चाहिए कि शिशु-हत्या कोई सनकी अवधारणा नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी वस्तु है जो कई पशु समाजों में विकसित हुई है या यह कुदरती भी है.