जानिए इस बार सपा में नहीं तो कहा शिफ्ट हुआ यादव का वोट बैंक

यादव वोट बैंक एक बार फिर बहस में है बीएसपी प्रमुख मायावती ने पार्टी की समीक्षा मीटिंग में कह दिया है कि सपा से गठबंधन का कोई लाभ नहीं हुआ

वोट ट्रांसफर का फार्मूला पास नहीं रहा तमाम स्थान यादव वोट बीएसपी को नहीं मिले, यहां तक कि सपा के साथ भी पूरी तरह से नहीं रहे अन्यथा डिंपल यादव कन्नौज से  मुलायम परिवार के लोग अन्य सीटों से चुनाव नहीं हारतेमायावती का यह चुनावी आरोप अगर ठीक है तो फिर यादव वोट गया कहां? यादव तो सपा के पारंपरिक वोटर हैं क्या 2019 के लोकसभा चुनाव में यादव बीजेपी के साथ शिफ्ट हो गए?

सवाल यह भी है कि क्या यादव सिर्फ समाजवादी पार्टी को वोट देते रहे हैं? इस वोटबैंक पर क्या सपा का ही एकाधिकार है? यूपी की सियासत में यादव क्यों इतने अहम हैं  इनकी पॉलिटिक्स क्यों सिर्फ एक परिवार तक सिमट जाती है दरअसल, कोई भी जाति पूरी तरह से किसी एक पार्टी के साथ नहीं रहती यादवों के साथ भी ऐसा ही था सीएसडीएस के एक सर्वे के मुताबिक 2009 के लोकसभा चुनाव में सबसे अधिक 73 प्रतिशत यादव समाजवादी पार्टी के साथ थे जबकि सिर्फ 6 प्रतिशत यादव वोट भाजपा के साथ आया था कांग्रेस पार्टीके पास 11  बीएसपी के पास सिर्फ पांच प्रतिशत यादव थे ( )

लेकिन 2014 आते-आते भाजपा ने सपा के इस गढ़ में सेंध लगा ली थी सपा के पास सिर्फ 53 प्रतिशत यादव रह गए  भाजपा के साथ 6 से बढ़कर 27 प्रतिशत हो गए कांग्रेस पार्टीके पास आठ  बीएसपी के पास महज तीन प्रतिशत ही यादव वोटर रह गए भाजपा ने ग्वाल, ढढोर गोत्र के नाम पर इन्हें तोड़ने की प्रयास की इस जाति के अंदर छोटे-छोटे संगठन बनवाकर उनमें बेचैनी पैदा की गई  इस 2019 के चुनाव में रिकॉर्ड यादव मतदाताओं ने भाजपा को वोट किया सेंटर फॉर द स्‍टडी ऑफ सोसाइटी एंड पॉलिटिक्‍स के निदेशक प्रोफेसर एके वर्मा के मुताबिक करीब 33 प्रतिशत यादवों वोटरों ने भाजपा को वोट दिया

शायद इसीलिए यादवलैंड में भी इस बार भाजपा की आंधी चली उसने सपा से कन्नौज, बदायूं  फिरोजाबाद जैसी उसकी पारंपरिक सीटें छीन लीं वर्मा कहते हैं, “लोकसभा चुनाव के मद्देनजर एसपी-बीएसपी ने गठबंधन तो कर लिया था लेकिन जनता के सामने कोई स्पष्ट एजेंडा रखने में नाकाम रहे जबकि भाजपा का एजेंडा साफ था लोगों के सामने क्षेत्रीय बनाम राष्ट्रीय पार्टी को चुनने का मुद्दा था, जिसमें उन्होंने भाजपा को चुना विपक्षी नेता मोदी को निशाना बनाते रहे, लेकिन जनता को यह बताने में नाकाम रहे कि अगले पांच वर्ष के लिए उनका रोडमैप क्या है भाजपा की जीत किसी लहर से ज्यादा उसके कार्य से है, जो उसने बीते कुछ वर्षों में जमीन पर किए हैं ”

तो क्या यादव वोटबैंक में ऐसे लगी सेंध?

’24 अकबर रोड’ के लेखक रशीद किदवई कहते हैं, “मुलायम सिंह यादव से पहले भी यादव राजनीतिक रूप से जागरूक थे, लेकिन उनके आने के बाद वे एकदम से गोलबंद हो गएइसीलिए भाजपा इन पर लगातार डोरे डाल रही है  चुनावी सर्वे बताते हैं कि वो इसमें सफल भी दिख रही है यादव वोटबैंक में सेंध लगाने में वो इसलिए सफल है क्योंकि यादवों की हिंदू धर्म में गहरी आस्था है वे श्रीकृष्ण को अपना आराध्य मानते हैं, ऐसे में भाजपा धर्म  आस्था के बल पर सरलता से उनके समीप हो जाती है ग्वाल, ढढोर को लेकर जो स्पेस बन रहा है उसमें भी वो सेंध लगा रही है बड़ा तर्क ये है कि मुलायम सिंह  अखिलेश सारे उत्तर प्रदेश के यादवों को बराबरी की नजर से शायद नहीं देख पाए इसलिए वो यादव भाजपा की तरफ गए ”

बीजेपी का ‘यादववाद’

भाजपा में राष्ट्रीय स्तर पर एक बड़े नेता हैं भूपेंद्र यादव, जो पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की कोर टीम का भाग हैं उनका नाम नए अध्यक्ष की रेस में भी है वैसे उनके पास महासचिव पद की जिम्मेदारी है वो भाजपा के प्रमुख रणनीतिकारों में शामिल हैं नरेन्द्र मोदी सरकार पार्ट-2 में दो यादवों को मंत्री भी बनाया गया है राव इंद्रजीत सिंह  नित्यानंद राय (यादव हैं) को  अहम विभाग दिए गए हैं उत्तर प्रदेश से हरनाथ यादव राज्यसभा मेम्बर हैं  सुभाष यदुवंश बीजेपी युवा मोर्चा के अध्यक्ष हैं

उत्तर प्रदेश में भाजपा लगातार इस जाति में पैठ बनाने की प्रयास करती नजर आ रही है लेकिन योगी सरकार में सिर्फ एक यादव, गिरीशचंद्र यादव को ही बनाया गया है   17वीं लोकसभा के चुनाव के लिए भाजपा ने उत्तर प्रदेश में जिन 40 स्टार प्रचारकों की सूची जारी की थी उसमें एक भी यादव का नाम नहीं था

समाजवादी पार्टी का ‘यादववाद’

पिछले हफ्ते मुझे कन्नौज का रहने वाले एक यादव टैक्सी ड्राइवर मिला वार्ता का सिलसिला डिंपल यादव की पराजय से प्रारम्भ हुआ ड्राइवर ने बताया कि यादवों ने भी डिंपल को इसलिए वोट नहीं दिया क्योंकि यहां सबकुछ इसी यादव परिवार के पास है सारे अधिकारी, ठेकेदार, ब्लॉक के नेता, जिला परिषद के नेता सब इन्हीं के परिवार  सम्बन्धी वाले यादव हैं इसलिए एक बार भाजपा को देख रहे हैं इस बात की तस्दीक इलाहाबाद उच्च न्यायालय के रिटायर्ड जस्टिस सभाजीत यादव भी करते हैं वो कहते हैं कि मुलायम सिंह का यादव प्रेम सिर्फ अपने परिवार तक सीमित है ये बात हकीकत है कि ज्यादातर यादव सपा के साथ जुड़े हैं लेकिन इसमें उसका नुकसान भी है अब देखिए वर्तमान सरकार में वे कहां हैं?

सपा के साथ क्यों रहे यादव?

ऑल इंडिया यादव महासभा के राष्ट्रीय महासचिव प्रमोद चौधरी कहते हैं, “यादव सभी पार्टियों में हैं लेकिन उत्तर प्रदेश में ज्यादा झुकाव इसलिए सपा की तरफ है क्योंकि इसमें यादव लीडरशिप है उनकी बड़ी सहभागिता है ” जब मुलायम सिंह यादव  अखिलेश यादव का शासन आया तो यादवों का शासन में बोलबाला था यादव डीएम, यादव एसपी, यादव तहसीलदार  यादव दारोगा

‘द समाजवादी पार्टी: ए स्टडी ऑफ इट्स सोशल बेस आईडियोलॉजी एंड प्रोग्राम’ नामक पुस्तक में डॉ शफीउज्जमान ने पीएसी  उत्तर प्रदेश पुलिस में सपा के शासन ( जून-जुलाई 1994) के दौरान हुई भर्तियों का जो ब्योरा दिया है, उससे साफ होता है कि सपा की तरफ यादव वोटों का ध्रुवीकरण तेजी से क्यों हुआ? इसके मुताबिक 3181 लोगों की भर्ती में 1298 यादव थे इसमें गैर यादव ओबीसी सिर्फ 64 थे इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यादव सपा से अनायास ही नहीं जुड़े

ओबीसी में सबसे जागरूक जाति 

उत्तर प्रदेश की तमाम ओबीसी जातियों में यादवों की हिस्सेदारी क़रीब 20% है उत्तर प्रदेश की कुल आबादी में करीब 8 से 9% यादव वोटर इतने गोलबंद हैं कि मंडल से पहले  उसके बाद, पॉलिटिक्स के दोनों कालखंडों में उनका प्रभाव रहा है उत्तर प्रदेश में पांच बार उनके मुख्यमंत्री रहे हैं छोटी बड़ी 5 हजार से अधिक जातियों वाले समूह ओबीसी में सबसे ज्यादा राजनीतिक चेतना यादवों में देखी गई है इसीलिए उत्तर प्रदेश जैसे राज्य, जहां आजादी के बाद से लगातार सवर्ण ही मुख्यमंत्री बनते आ रहे थे, वहां 1977 में रामनरेश यादव के हाथ सत्ता की बागडोर लग गई उत्तर प्रदेश की पोस्ट मंडल राजनीति में मुलायम सिंह यादव परिवार का दबादबा बनने लगा