जानिए आज भी यहाँ भटक रहे हैं महाभारत के अश्वत्थामा

महाभारत में अश्वत्थामा एक ऐसे योद्धा थे, जो अकेले दम पर संपूर्ण युद्ध लड़ने की क्षमता रखे थे. कहते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण के श्राप की वजह से अश्वत्थामा आज भी भूमि पर भटक रहे हैं. समय-समय लोग लोग इस बात का सबूत भी देते रहे हैं, जिसमें से एक है असीरगढ़ किले से जुड़ी एक कहानी.
असीरगढ़ किला मध्य प्रदेश के बुरहानपुर से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर दिशा में सतपुड़ा पहाडियों के शिखर पर समुद्र सतह से 750 फुट की ऊंचाई पर स्थित है.बुरहानपुर खंडवा से लगभग 80 किलोमीटर दूर है. ऐसा माना जाता है कि असीरगढ़ किले के शिवमंदिर में अश्वत्थामा रोजाना सबसे पहले पूजा करने आते हैं. शिवलिंग पर रोजानाप्रातः काल ताजा फूल  गुलाल चढ़ा मिलना अपने आप में एक रहस्य है.
कहते हैं कि किले में स्थित तालाब में स्नान करके अश्वत्थामा शिव मंदिर में पूजा-अर्चना करने जाते हैं. आश्चर्य कि बात यह है कि पहाड़ की चोटी पर बने किले में स्थित यह तालाब बुरहानपुर की तपती गरमी में भी कभी सूखता नहीं. तालाब के थोड़ा आगे गुप्तेश्वर महादेव का मंदिर है. मंदिर चारों तरफ से खाइयों से घिरा है.
कहा जाता है कि मंदिर के चारों तरफ जो खाइयां हैं, उन्हीं में से किसी एक में गुप्त रास्ता बना हुआ है, जो खांडव वन (खंडवा जिला) से होता हुआ सीधे मंदिर में निकलता है  इसी रास्ते से होते हुए अश्वत्थामा मंदिर के अंदर आते हैं  पूजा करते हैं.
मान्यता है कि असीरगढ़ के अतिरिक्त मध्यप्रदेश के ही जबलपुर शहर के गौरीघाट (नर्मदा नदी) के किनारे भी अश्वत्थामा भटकते रहते हैं. लोकल निवासियों के मुताबिक, कभी-कभी वे अपने मस्तक के घाव से बहते खून को रोकने के लिए हल्दी  ऑयल की मांग भी करते हैं. गांव के कई बुजुर्गों की मानें तो जो एक बार अश्वत्थामा को देख लेता है, उसका मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है.
बता दें कि हनुमान जी सहित भूमि पर कुल आठ लोग अमर माने गए हैं, जिसमें अश्वत्थामा का नाम भी आता है. अश्वत्थामा के भूमि पर भटकने के पीछे कहानी ये है कि पिता द्रोणाचार्य की मौत ने अश्वत्थामा को विचलित कर दिया था. महाभारत युद्ध के बाद जब अश्वत्थामा ने पिता की मौत का प्रतिशोध लेने के लिए पांडव पुत्रों का वध कर दिया  पांडव वंश के समूल नाश के लिए उत्तरा के गर्भ में पल रहे अभिमन्यु पुत्र परीक्षित को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाया, तब भगवान श्रीकृष्ण ने परीक्षित की रक्षा कर दंड स्वरुप अश्वत्थामा के माथे पर लगी मणि ले ली  उन्हें तेजहीन कर दिया. इसके साथ ही उन्होंने अश्वत्थामा को युगों-युगों तक भटकते रहने का श्राप दे दिया.