जानिए अपने बच्चो के प्रति ये होती है पिता की जिम्मेदारीया

जून महीने का तीसरा रविवार दुनिया पिता दिवस के रूप में समर्पित है. दुनिया पिता दिवस पर महाराष्ट्र के युवा किसान सचिन चौधरी अपने अनुभव कुछ यूं साझा करते हैं- ‘खेती मेरा पेशा है  इसे अहमियत भी देता हूं, लेकिन इसके साथ-साथ मुझे यह भी याद रहता है कि मैं एक बच्चे का पिता भी हूं  उसे पूरा समय देना भी मेरा दायित्व है.

यवतमाल जिले के वेणी गांव के सचिन चौधरी अपने 22 महीने के बच्चे कृष्ण के साथ खेलते हैं, खेल-खेल में उसे बहुत सी ऐसी बातें सिखाते हैं जो बच्चे के दिमाग के विकास में सहायक होती हैं.

इसी तरह वित्तीय सेवाएं देने वाली अमेरिकी कंपनी जेपी मोर्गेन चेज के डेरेक रोटरेडो की कहानी भी है. डेरेक 2017 में जब दूसरी बार पिता बने तो उन्होंने बच्चे की देखभाल में पत्नी का पूरा साथ देने के लिए कंपनी में 16 हफ्तों की पेड पैरेंट लीव के लिए आवेदन किया. लेकिन कंपनी ने यह कहकर इन्कार कर दिया कि इतनी लंबी छुट्टी सिर्फ मां को ही दी जा सकती है, क्योंकि मां ही बच्चे की प्राथमिक देखभाल करती है. इसके बाद डेरेक ने भेदभाव वाली नीति को लेकर समान रोजगार मौका आयोग में कंपनी पर केस कर दिया. कंपनी के कई पुरुष भी डेरेक के साथ आ गए. अब कंपनी दो वर्ष बाद केस करने वालों को 50 लाख डॉलर का हर्जाना देगी. जेपी मोर्गेन कंपनी ने यह भी बोला है कि वह पैरेंटल लीव के लिए अब नयी नीतियां बनाएंगी. बच्चे के पालन- पोषण, परवरिश में पिता की किरदार को पहचानने वाली सोच की ओर बढ़ते कंपनी के यह कदम एक बहुत बड़े परिवर्तन का इशारा हैं.

बेशक हिंदुस्तान के सचिन  अमेरिका के डेरेक एक दूसरे को नहीं जानते, लेकिन दोनों की चिंता एक जैसी है- बच्चे के पालन-पोषण में पिता का उल्लेखनीय योगदान. दुनियाभर में बच्चे की जिंदगी की आरंभ बेहतर हो, उसका शारीरिक  दिमागी विकास उसकी आयु के अनुसार हो, अभिभावक बच्चों के संरक्षण, पौष्टिक आहार समेत उसकी प्रारंभिक एजुकेशनपर ध्यान दें, इस मंशा के साथ संसार में जून महीने को पालन-पोषण, परवरिश माह के रूप में भी मनाया जा रहा है. महात्मा गांधी के सेवा ग्राम वर्धा में स्थित महात्मा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, यूनिसेफ के अर्ली चाइल्डहुड डेवलपमेंट प्रोजेक्ट में पार्टनर है  इस प्रोजेक्ट से संबद्ध डॉ सुबोध गुप्ता का मानना है कि अभिभावक बच्चे की परवरिश में अमिट छाप छोड़ सकते हैं. उन्हें बस इतना बताने भर की आवश्यकता है कि यह कैसे करना है.

यूनिसेफ, महाराष्ट्र के चार जिलों- यवतमाल, पुणे, औरंगाबाद  पालघर में अर्ली चाइल्डहुड डेवलपमेंट प्रोजेक्ट चला रहा है. पालघर जिले के ब्लॉक मनोर-2 के सावरा पडवल पाडा गांव में आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं. आंगनवाड़ी सेविका वैशाली का बोलना है कि आंगनवाड़ी में पालक सभा पर मुख्य जोर इस बात पर रहता है कि कैसे अभिभावक, पालक, देखभाल करने वाले बच्चों को घर में ऐसा माहौल प्रदान करें जिससे बच्चे का विकास उचित समय पर हो. दुनिया विख्यात बाल विशेषज्ञों का मानना है कि अर्ली चाइल्डहुड डेवलपमेंट पर फोकस करने का मतलब भविष्य में निवेश करना है. बच्चे की जिंदगी के शुरुआती कुछ वर्षों में उसका दिमाग जिस गति से विकसित होता है, उतनी गति से फिर कभी नहीं होता.इसमें हस्तक्षेप करने वाली नीतियों का मतलब बच्चों में नाटापन को रोकना है. बताते चलें कि हिंदुस्तान में नाटापन को कम करना एक बड़ी चुनौती बनी हुई है. दुनिया के एक तिहाई नाटे बच्चे हिंदुस्तान में ही हैं. हालांकि हिंदुस्तान सरकार इस मामले को लेकर गंभीर है  बच्चों का शारीरिक  मानसिक विकास उनकी आयु के अनुकूल सटीक रूप से हो, इस ओर प्रयासरत है.