चुनावी नारे भी तय कर देते हैं नतीजे

स्लोगन यानि नारे चुनाव की पहचान माने जाते हैं. चुनाव के दौरान एक से बढ़कर एक नारे गढ़े जाते हैं जो कई बार जनमानस पर अपना प्रभाव भी छोड़ जाते हैं. कई बार नारे किसी पार्टी की गवर्नमेंट भी बना देते हैं. याद कीजिए 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी का नारा- अबकी बार मोदी गवर्नमेंट  अच्छे दिन आएंगे. ये दोनों नारे लोगों की जुबान पर चढ़े हुए थे.
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चुनाव वाले पांच राज्यों में सबसे बड़े राज्य मध्यप्रदेश की बात करें तो इस बार अभी तक कोई प्रभावी नारा सुनाई नहीं पड़ा है. विभिन्न दलों की ओर से ऐसे नारे का इंतजार है जो जनता को लुभा सके  मतदाताओं को अपनी ओर खींच सके.

1996 का नारा अबकी बारी, अटल बिहारी  2014 के नारे- अबकी बार, मोदी गवर्नमेंट  अच्छे दिन आएंगे अब भी आम आदमी को लुभाते हैं. खासतौर पर अच्छे दिन आएंगे का नारा तो विदेशों में भी लोकप्रिय हुआ था. 2014 में इन नारे ने बीजेपी के लिए कैसा प्रभाव किया इसका नतीजा सब देख चुके हैं.

मध्यप्रदेश में कुछ नारे इन दिनों चल रहे हैं, हालांकि इनका प्रभाव पुराने नारों जैसा तो नहीं है लेकिन कुछ लुभावना जरूर है. बीजेपी ने नारा दिया है- अबकी बार 200 पार. बाकी पार्टियों के लिए इसके जवाब में नारा लाना चुनौती है. इसी तरह  भी नारे बनाए गए हैं. हर बार, बीजेपी सरकार. युवाओं का संदेश, समृद्ध मध्यप्रदेश. लेकिन इनमें 1996  2014 जैसा जादू नजर नहीं आता है.

कांग्रेस पार्टी ने एक नारा दिया है- किसानों का कर्जा माफ, बिजली बिल हाफ  प्रदेश से भाजपा साफ. थोड़ा बड़ा है लेकिन प्रभावी नजर आता है. कांग्रेस पार्टी की ओर से दिया गया स्लोगन, क्योंकि यहां बीजेपी है भी खूब चल रहा है. पहली बार मैदान में उतर रही सपाक्स का नारा है- जय जय सपाक्स, घर-घर सपाक्स.