गणेश गोदियाल ने बया की केदारनाथ आपदा की वो खौफनाक रात की सच्चाई

बदरी केदार मंदिर समिति के तत्कालीन अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने उस स्याह रात की खौफनाक सच्चाई बयां की.
 उन्होंने बताया  17 जून 2013 की शाम को यह सुगबुगाहट प्रारम्भ हो गई थी कि केदारनाथ में कुछ अनहोनी हुई है. मगर किसी के पास कोई जानकारी नहीं थी. न सरकार को कुछ पता था, न उसके तंत्र के पास कोई सूचना थी.
कैबिनेट मंत्री डॉ हरक सिंह रावत 18 जून को केदारनाथ पहुंचे  लौटकर उन्होंने जो कुछ बताया, वह पैरों तले जमीन खिसकाने वाला था.
बोला कि मैं तुरंत केदारनाथ जाना चाहता था, लेकिन श्रीनगर में भी आपदा का कहर कुछ कम नहीं टूटा था. क्षेत्रीय विधायक होने के नाते लोगों की यहां भी उम्मीदें थी. केदारनाथ जाने की बेचैनी थी, लेकिन श्रीनगर में राहत कार्यों में 20 जून तक फंसा रह गया. 21 जून वो दिन था, जिस दिन केदारनाथ जाने की स्थिति बनी.
मैं  मेरे साथ मेरे पीआरओ वीरेंद्र नेगी को हेलीकाप्टर से केदारनाथ में ड्राप कर दिया गया. दारुण दुख  खौफनाक मंजर की मिली जुली तस्वीर ने कुछ समय के लिए हमें जड़ कर दिया. हर स्थान लाशों के ढेर, हर तरफ मरघट सा माहौल. हम दोनों सीधे मंदिर के गर्भगृह में घुस गए. यहां भी कई मृत शरीर पडे़ थे.
पूरे केदारनाथ में हम दो लोगों के अतिरिक्त तीसरा व्यक्ति, जो कि वहां का लोकल था उपस्थित थे. सबसे पहले गर्भगृह की पवित्रता बहाली का प्रश्न सामने खड़ा था. हम तीनों ने गर्भगृह में रखे शवों को खींचकर बाहर लाना प्रारम्भ किया. गर्भगृह की सफाई प्रारम्भ की, उन स्थितियों में जितना हमसे होने कि सम्भावना था, उतनी सफाई की.
पूरा दिन गर्भगृह में सफाई में जुटे रहने के बाद रात कहां काटी जाए, ये सवाल सामने था. हम तीनों एक खाली धर्मशाला में घुस गए. यहां पर खाने पीने का पूरा सामान सुरक्षित था, लेकिन धर्मशाला के ग्राउंड फ्लोर शवों से अटा पड़ा था. यह हमारे अपने लोगों के मृत शरीर थे, जो मोक्ष  पुण्य प्राप्ति की कामना में यहां तक चले आए थे.
रात भर नींद नहीं आई. करवट बदलते रहे, चहलकदमी करता रहा. किसी तरह रात कटी. ऐसी रात जिंदगी में कभी नहीं गुजरी, इतनी भयानक, इतनी खौफनाक. अगली प्रातः काल का इंतजार सिर्फ एक लक्ष्य के साथ कर रहा था. मंदिर में खंडित पूजा को फिर से प्रारम्भ करना. धर्मशाला में पूजा इत्यादि सामग्री भी सुरक्षित थी.
हम तीनों फिर से गर्भगृृह पहुंचे. शिवलिंग को साफ किया  वहां पर दीपक प्रज्वलित कर दिया. लोकल युवक को मैने मंदिर समिति के अध्यक्ष की हैसियत से यह जिम्मेदारी सौंपी कि वह इस दीपक की लौ को तब तक जरूर बचाए रखेगा, जब तक पूजा अर्चना की समुचित व्यवस्था नहीं हो जाती.
हमें ये सूचना मिली की मंदिर के पास ऊंचाई वाले जगह में एक झील के पास कुछ लोग जीवित हैं. वह जान बचाकर ऊंचाई वाले जगह की तरफ भागे थे. हम वहां पहुंचे, तो हमें 28 लोग जीवित मिले. एक ऐसा परिवार भी था, जिसमें मां बाप मर गए थे  बेटे बहू जीवित थे. बेटा अपने मां बाप के मृत शरीर को छोड़कर जाने को तैयार नहीं था.
28 लोगों को लेकर हम नीचे की तरफ आए. एक धर्मशाला में रुकवाया. 26 जून तक हम लोग केदारनाथ में ही थे. हेलीकाप्टर से लोगों को निकाला जाने लगा था. 27 जून को मैं अपने पीआरओ के साथ देहरादून लौट आया. छह साल बीत चुके हैं, जब भी केदारनाथ आपदा की बरसी को याद करता हूं सिहर जाता हूं. खौफनाक यादें आज भी जेहन में ताजा हैं.