कश्मीर में एक युवक ने गरीबी से तंग आकर किया ये काम

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम के छोटे से गांव में एक झोपड़ी में रहने वाले शब्बीर ने जब देखा तो मन में एक ही भय था कि बिना कोचिंग के वह कैसे अपना सपना पूरा कर पाएगा.

परिवार के आर्थिक दशा ऐसे नहीं हैं कि वह कोचिंग कर पाए. इस भय से शब्बीर ने बारहवीं के बाद बीएससी में एडमिशन ले लिया. लेकिन आखिरकार शब्बीर ने अपनी मेहनत के वश न सिर्फ इस भय को मात दी बल्कि नीट एग्जाम में 559 नंबर भी ले आए. अब वह जम्मू और कश्मीर के मेडिकल कॉलेज में ही एडमिशन लेने की तैयारी कर रहे हैं.

20 वर्ष के शब्बीर अहमद कोली के पिता अधीन हसन कोली किसान हैं. शब्बीर के दो छोटे भाई  दो छोटी बहन हैं. पिता की कमाई से ही पूरा परिवार चलता है. शब्बीर ने बताया कि मैंने शुरुआती पढ़ाई गांव के स्कूल से ही की फिर 12 वीं अनंतनाग से की. बचपन से देखा है तो 2018 में नीट एग्जाम दिया लेकिन तब 374 नंबर ही ला सका. तब लगा कि मैं अपना सपना कभी पूरा नहीं कर पाऊंगा. कोचिंग के लिए पैसे ना होने का दुख भी होता था. मैं मन ही मन मान चुका था कि बिना कोचिंग के यह संभव नहीं है. मैं डरा हुआ था इसलिए बीएससी में एडमिशन ले लिया. लेकिन फिर सोचा कि खुद मेहनत करूंगा  भय को हराने की ठानी. शब्बीर ने बोला कि इंसान कठिन में  मजबूत हो जाता है. मैंने खुद को भरोसा दिलाया कि मैं यह कर सकता हूं. तब सब चीजें मेरे लिए सरल हो गईं. खुद पढ़ाई कर इतने नंबर ला पाया. हालांकि अब भी लगता है कि देश के दूसरे हिस्सों में रहने वाले बच्चों की तरह हमें भी मौका मिलता तो ज्यादा अच्छा कर पाता. वह कहते हैं कि कश्मीर में टैलंट की कोई कमी नहीं है लेकिन यहां दशा बेकार रहते हैं  आए दिन स्कूल बंद रहते हैं.

वह कहते हैं कि पॉलिटिक्स मसलों में बच्चों को नहीं घसीटना चाहिए. बच्चों ने किसी का क्या बिगाड़ा है. उन्हें बीच में नहीं लाना चाहिए. देश के दूसरे हिस्से में कश्मीरी स्टूडेंट्स के साथ बेकार बर्ताव की खबरें आती हैं जिससे भी हम डरे हैं. मैं एम्स का भी एग्जाम देना चाहता था लेकिन फॉर्म ही नहीं भरा. यह सोचकर कि अगर सिलेक्ट हो भी गया तो जम्मू और कश्मीरसे बाहर कहां जाऊंगा. घर वाले मुझे लेकर परेशान रहेंगे. मैं चाहता हूं कि सब स्थान अमन हो  हमारे जैसे स्टूडेंट्स भी बाहर जाकर बड़े-बड़े कॉलेजों में पढ़ाई कर पाएं.