कश्मीर मसले में बेवजह दखल देना ट्रंप को पड़ा भारी आखिर भारत-पाक में किसका देंगे साथ

इसमें कोई शक नहीं कि पिछले सात दशकों से भारत और पाकिस्तान कश्मीर के मुद्दे पर आमने सामने हैं. हमने बातचीत भी की. जंगें भी लड़ीं. ज़ख्म भी खाए. ज़ख्म दिए भी. मगर कश्मीर के मुद्दे पर कभी किसी तीसरे की मध्यस्थता स्वीकार नहीं की. लेकिन पाकिस्तान के मौजूदा हालात ऐसे हैं कि उसे अपनी चरमराती अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए अमेरिका का साथ चाहिए. और अमेरिका को दुनिया के सामने अपनी चौधराहट दिखाने का बहाना. और इसी बहाने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कश्मीर के मसले में कूद पड़े. अब सवाल ये कि बेगानी शादी में आख़िर अब्दुल्ला बेवजह दीवाना क्यों हुआ.

कश्मीर मसले पर ट्रंप ने एक बार फिर दखल दिया है. कश्मीर में मध्यस्थता के लिए ट्रंप बेताब हैं! कश्मीर पर उन्होंने मज़हब का ‘ट्रंप’ कार्ड खेला है. एक बड़ी पुरानी कहावत है, बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना. इस कहावत को सच होते सुनिए भी और देख भी लीजिए. भारत सरकार ने संसद में बोल दिया. विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बैंकॉक में अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो से पर्सनली बोल दिया. खुद व्हाइट हाउस ने बोल दिया.

मगर एक सीधी सी बात अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को समझ नहीं आ रही है. कश्मीर में धारा 370 भारत का आंतरिक और कश्मीर समस्या द्विपक्षीय मामला है. इसमें बेगाने की कोई गुंजाइश ही नहीं है. लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कश्मीर मसले पर मध्यस्थता करने के लिए बेताब हुए जा रहे हैं. अब ये तीसरी मर्तबा है जब ट्रंप ने कश्मीर में मध्यस्था करने का राग अलापा है.

कुल मिलाकर अमेरिका के राष्ट्रपति साहब ये कहना चाहते हैं कि जो समस्या 70 साल से हल नहीं हो पाई है. वो उसे चुटकियों में सुलझा देंगे. दरअसल, ट्रंप बिना फीस का वकील बनने की कोशिश इसलिए कर रहे हैं. क्योंकि उन्हें दुनिया पर अमेरिका की चौधराहट कायम करनी है. उसके लिए ट्रंप कोई भी बयाना देने को तैयार हैं. हां उन्हें इतना बोलने की हिम्मत पाकिस्तान ने ज़रूर दे दी है. और अब एक बार फिर दुनिया ट्रंप की इस पेशकश को बेवजह का बयान मान रही है. बीजेपी के लाख मुखालिफ होने के बावजूद ओवैसी ने उन्हें वो सटीक जवाब दे दिया है. जो शायद भारत आधिकारिक तौर नहीं दे पाता.

हिंदुस्तान अमेरिका को कुछ माने ना माने मगर पाकिस्तान उसके सामने नतमस्तक है. दुनियाभर से दुत्कार मिलने के बाद अब उसे ट्रंप से ही उम्मीद नज़र आ रही है. मगर आपको बता दें कि इसी अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पाक का साथ देने से इंकार कर दिया था. इतिहास खंगालेंगे तो पाएंगे कि अमरीका हर तरफ सिर्फ अपना हित साधता है. मौजूदा वक्त में पाकिस्तान आर्थिक तौर पर अब पूरी तरह से अमेरिका के भरोसे हैं.

उधर, दक्षिण एशिया और खासकर चीन पर दबदबे के लिए अमेरिका ने अफगानिस्तान पर कब्जा जमा रखा है और वो इसे छोड़ना नहीं रहा है. इसलिए वो इस वक्त दोनों मुल्कों को नाराज़ नहीं करना चाहता है. ट्रंप के बयान को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए. क्योंकि अभी कुछ दिन पहले ही ट्रंप ने मोदी से आधे घंटे तक बात की थी. और इसके फौरन बाद उन्होंने इमरान खान को फोन मिला दिया था. कुल मिलाकर ट्रंप एक ऐसी छवि पेश करना चाहते हैं कि वो भारत और पाकिस्तान के बीच का कश्मीर मुद्दा सुलझा सकते हैं अगर दोनों तैयार हो जाएं तो.

मगर राष्ट्रपति ट्रंप शायद ये भूल गए कि कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है. कश्मीर को लेकर भारत की लाइन साफ है. किसी तीसरे पक्ष को कबूला नहीं जाएगा. कश्मीर दुनिया में तीन सबसे बड़े संघर्ष वाले इलाकों में आता है. नॉर्थ और साउथ कोरिया की लड़ाई में तो अमेरिका घुसा ही हुआ. इज़राइल और फिलीस्तीन के संघर्ष में भी उसी का हाथ है. और अब वो किसी तरह कश्मीर के संघर्ष में भी शामिल होना चाहता है ताकि दुनिया को दिखा सके कि सबसे बड़ा चौधरी वही है. इसके लिए झूठ भी बोलना पड़े तो ट्रंप गुरेज़ नहीं करते.

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कारोबार की दुनिया से अमेरिकी राष्ट्रपति की कुर्सी तक पहुंचे हैं. वो हर चीज़ को नफा-नुकसान के तराजू पर तौलते हैं. उनके तौर-तरीकों की वजह से उन्हें अमेरिका तक में भी गंभीरता से नहीं लिया जाता. उनके रोज़ाना झूठ बोलने के आंकड़े खुद अमेरिका के अखबार अक्सर दिया करते हैं. ऐसे में राष्ट्रपति ट्रंप की कूटनीति बारीकियों और गंभीरता को देखते हुए ही भारत ने शायद अब तक ट्रंप के बयान पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं जताई है. हालांकि इसी हफ्ते फ्रांस में होने वाला जी7 सम्मेलन में पीएम मोदी डोनल्ड ट्रंप से मिलेंगे. उम्मीद है कि प्रधानमंत्री मोदी.. अमेरिकी राष्ट्रपति को भारत की कश्मीर नीति साफ कर देंगे.