इस गांव में हिन्दू रोशन करते है मस्जिद में चिराग, जानिए ये है वजह

देश के बंटवारे से पहले इस मस्जिद से अजान की आवाज गूंजती थी. ईद सारे उत्साह से मनाई जाती थी. नमाज अदा की जाती  देश की खुशहाली की दुआएं की जातीं.

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अब यहां यह सबकुछ नहीं होता, लेकिन सद्भावना का चिराग पहले से भी ज्यादा रोशन है. लुधियाना जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर दूर गांव हेडों बेट में स्थित यह मस्जिद आजादी से पहले के दौर की याद करा देती है. देश के विभाजन से पूर्व यह गांव मुस्लिम बाहुल्य था.

करीब 50 मुस्लिम परिवार रहते थे, लेकिन आज 25 सौ की आबादी वाले इस गांव में उनका एक भी घर नहीं है. मगर, मस्जिद पूरी तरह आबाद है. गांव के लोगों ने सद्भावना की अनूठी मिसाल पेश की है. कभी धर्म की दीवार बनने नहीं दी. इसे हटाने या गिराने का विचार दूर-दूर तक नहीं आया. मस्जिद में चिराग रोशन करने से लेकर मरम्मत भी कराते आ रहे हैं. कुछ दिन पहले नया दरवाजा लगाया है  जल्द नए सिरे से मरम्मत का कार्य प्रारम्भ होगा.

गांव में सभी जातियों के लोग हैं. मस्जिद के आसपास बंटवारे के बाद पाक के मीरखपुर (सियालकोट) से उजड़कर आए करीब 15 किसान परिवार रहते हैं. इन्हीं परिवारों में से प्रेम सिंह चार वर्ष से मस्जिद की सेवा  संभाल रहे हैं. अगर उन्हें किसी कार्यवश गांव से बाहर जाना हो तो यह जिम्मेदारी उनके पुत्र गगनदीप संभालते हैं. गांव की आटा चक्की पर जॉब करने वाले प्रेम सिंह बताते हैं कि प्रातः काल शाम मस्जिद में दीया जलाने  सफाई से संतुष्टि मिलती है. जब से यह प्रारम्भ किया है गांव में खुशहाली है.

वीरवार को मस्जिद में बने मजार पर दीया जलाने पूरा गांव उमड़ पड़ता है. ताज्जुब की बात है कि किसी को नहीं पता कि यह मजार किसका है? मगर, सभीश्रद्धाभाव से भरे हैं. मजार पर शीश नवाते हैं. हर साल पीले मीठे चावलों का लंगर लगता है. लोग यहां मन्नत मांगते हैं  पूरी होने पर चादर चढ़ाने की रस्म अदा करते हैं. यहां शीश झुकाकर कर ही कहीं बाहर निकलते हैं.

पाकिस्तान के मीरखपुर से आकर बसे सुरजीत सिंह का बोलना है कि बंटवारे के समय यहां के मुस्लिम परिवार पाक चले गए  वहां से कुछ किसान परिवार यहां आकर बस गए. समय-समय पर मलेरकोटला से मुस्लिम समाज के लोग यहां आकर इबादत करते हैं. गांव के पूर्व सरपंच जसविंदर सिंह बताते हैं कि देश के बंटवारे  मुस्लिम भाइयों के जाने के बाद भी मस्जिद के प्रति यहां के लोगों की श्रद्धा कम नहीं हुई है बल्कि जब भी मौका मिलता है तो वह इस मस्जिद मे माथा टेकने जरूर चले जाते हैं.