आपके जन्म के महीने व तारीख से ज्योतिषी लगा लेते है इस बात का पता और ये सच्चाई

हम सभी ने बचपन में घर के बड़ों को बातें करते हुए सुना होगा कि हमारी जन्म राशि और स्वास्थ्य के बीच एक रिश्ता होता है। हालांकि, हममें से कई लोगों को यह सुन कर हंसी भी आती होगी कि ग्रहों से हमारा स्वास्थ्य प्रभावित होता है, लेकिन विभिन्न शोध में इस बात के ठोक संकेत मिलते हैं कि हमारे जन्म के महीने और आगे जीवन में होने वाले शरीरिक विकास के बीच एक मज़बूत संबंध है।

यह जान लें कि आपने जिस महीने अथवा मौसम में जन्म लिया है, उसका आपके स्वास्थ्य पर होने वाला प्रभाव, काफी हद तक आपके जन्म के वातावरण पर भी निर्भर करता है। इसमें मौसम के अनुसार एलर्जी का खतरा और विटामिन डी की उपलब्धता में बदलाव जैसे कारण भी शामिल हैं। दिलचस्प बात यह है कि मां की कोख में बिताए गए मौसम का प्रभाव मां के स्वास्थ्य और शरीर पर होने के साथ ही, शिशु तक भी पहुंचते हैं। ऐसे में यह स्वाभाविक है कि उन खास महीनों में जन्म लेने वाले बच्चों को मां के जैसा स्वभाव या बीमारियों की संभावना भी होगी।

आयुर्वेद का पुरातन विज्ञान भी शिशु के जन्म के वक्त ग्रहों की स्थिति के हिसाब से उसकी स्वास्थ्य स्थिति का आकलन करता है। हालांकि इसे आपके स्वास्थ्य के बारे में निश्चित आकलन तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन यह जानना दिलचस्प होगा कि आपके जन्म का समय किस तरह से आपके शारीरिक एवं मानसिक संरचना को प्रभावित कर सकता है।

जनवरी से मार्च

जिन बच्चों का गर्भधारण गर्मी के मौसम में हुआ है, उनका जन्म वर्ष के प्रथम तीन महीनों में होता है। इस दौरान गर्भ में विटामिन डी की मात्रा अधिक होती है, जिसका शिशु भ्रूण के शारीरिक विकास पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। हालांकि कुछ अध्ययनों में यह भी संकेत मिले हैं कि मार्च महीने में जन्म लेने वाले बच्चों को दिल की बीमारियों का खतरा अधिक होता है, जिसमें कंजेस्टिव हार्ट फेलियर और माइट्रल वाल्व डिसऑर्डर जैसे जोखिम भी शामिल हैं।

अप्रैल से जून

गर्मी के मौसम में जन्म लेने वाले बच्चों को जीवन में आगे चलकर आंखों की रौशनी से जुड़ी तकलीफ हो सकती है। इसका कारण है, गर्भ से बाहर निकलते ही तेज़ रौशनी से होने वाला उनका सामना जो कि अन्य मौसमों की तुलना में गर्मी में अधिक होती है। गर्मी में जन्म लेने वाले बच्चों का स्वभाव साइक्लोथर्मिक होने की भी संभावना रहती है, यानि उनका खुशनुमा मूड किसी भी पल तेज़ी से उदासी में बदल सकता है। अध्ययन बताते हैं कि अधिक रौशनी और तापमान में रहने से मानसिक स्वास्थ्य को नियंत्रित करने वाले ब्रेन केमिकल्स प्रभावित हो सकते हैं।

जुलाई से सितंबर

दुनिया भर में जुलाई से अक्टूबर माह के दौरान वातावरण में एलर्जी फैलाने वाले धूल के कण अधिक मात्रा में होते हैं। शिशु अवस्था में मौसमी धूल कणों का सामना करने से जीवन में आगे चलकर अस्थमा जैसी बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है। इन महीनों के दौरान जन्मे लोगों में अस्थमा और एलर्जी होने के मामले काफी अधिक देखे गए हैं।

अक्टूबर से दिसंबर

ठंड के महीनों में जन्मे शिशुओं को न्यूरोलॉजिकल समस्याओं का अधिक खतरा होता है। जबकि अक्टूबर और नवंबर में जन्म लेने वाले बच्चों में सांस की बीमारी और प्रजनन संबंधी तकलीफों का जोखिम अधिक होता है। अध्ययन में पता चला है कि अक्टूबर, नवंबर या दिसंबर में जन्मदिन वाले लोगों का जीवनकाल लंबा होता है। वहीं, नवंबर में जन्मे बच्चों को एडीएचडी (अटेंशन डेफिशिट हाइपरएक्टिव डिसऑर्डर) होने का अधिक जोखिम होता है, लेकिन एक अच्छी बात यह भी है कि सर्दियों में जन्मे लोगों को दिल की बीमारी होने का खतरा अधिक नहीं होता।