मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को यहांमस्तिष्क ज्वर यानी एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) से पीड़ित बच्चों के परिजन के विरोध का सामना करना पड़ा.
वे मंगलवार को श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (एसकेएमसीएच) मेंमस्तिष्क ज्वर से पीड़ित बच्चों का हाल जानने के लिए पहुंचे थे. बच्चों के अभिभावक नीतीश कुमार से मुलाकात नहीं होने से नाराज थे. लोगों ने सीएम वापस जाओ व नीतीश मुर्दाबाद के नारे लगाए.
लोगों की नाराजगी हॉस्पिटल में सुविधाओं की कमी को लेकर भी थी. परिजनने आरोप लगाया कि बच्चों का ठीक तरह सेइलाज नहीं किया जा रहा है. नीतीशएसकेएमसीएच में करीब डेढ़ घंटे तक रहे. अस्पताल में सात आईसीयू हैं. सीएम ने सभी का दौरा किया और बच्चों का हाल जाना.
दूसरी तरफ बिहार के सीएम नीतीश कुमार के विरूद्ध मुजफ्फरपुर में हुई 109 बच्चों की मृत्यु को लेकर पीआईएल दाखिल की गई है. इसमें केंद्रीय मंत्री डॉ। हर्ष वर्धन, बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण अश्विनी चौबे का नाम भी शामिल है. मुद्दे की सुनवाई 26 जून को होगी.
दोबड़े अस्पतालों में 151 बच्चे भर्ती
- मस्तिष्क ज्वर सेसोमवार को6 व बच्चों की मृत्यु हो गई. 21 की हालत गंभीर बनी हुईहै. अभीएसकेएमसीएच व केजरीवाल अस्पताल में151 बच्चे भर्ती हैं.
- एसकेएमसीएच की हालत यह है कि यहां एक बेड पर तीन-तीन बच्चे हैं.आईसीयू में गंभीर बच्चाें की संख्या बढ़ जाने पर सामान्य वार्ड में ट्रांसफर कर दिया जाता है.डॉक्टरों के मुताबिक, इस बीमारी के कारण बच्चाें में ग्लूकाेज व साेडियम की कमी हाेती है. उपचार के नाम पर उन्हें यही चढ़ाया जा रहा है. जाे बच्चे बच गए ताे ठीक, नहीं तो उनकी माैत तय है.
- बीमारी क्या हैइस बारे में डाॅक्टर अब तक कुछ भी स्पष्ट नहीं कहपा रहे. चिकित्सक यह भी नहीं समझ पा रहे हैं कि बच्चों को दवा किस बीमारी की दें. पिछले एकसेऔसतन यहांहर तीन घंटे में एक बच्चे की मृत्यु हुई.
अब बारिश का इंतजार
प्रशासन अब बारिश के इंतजार में है, क्योंकि बारिश के बाद यह बीमारी अक्सर थम जाती है. एसकेएमसीएच, मुजफ्फरपुर के शिशु रोग विभाग के प्रमुख डॉ। गोपाल शंकर साहनी ने बताया,‘‘यह बीमारी न ताे वायरल है औरन ही इंसेफेलाइटिस. पुणे, दिल्ली या देश ही नहीं, अटलांटा के बेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूटमें भी इसकी जाँच हाे चुकी है. कहीं भी वायरस नहीं मिला.लीची से भी कुछ लाेग इस बीमारी को जोड़ते हैं,लेकिनइससेसंबंध साबित नहीं हुआ. 2005 में मैंने इस पर शाेध किया. मैंने यही पाया कि जब भी तापमान 38 डिग्री से ज्यादाऔर आर्द्रता 60-65% पर पहुंचती है, इस बीमारी के मुद्दे सामने आने लगते हैं. मौसम इस बीमारी की मुख्य वजह है.’’
कईबच्चोंकी जान बची, लेकिन आंखों की लाइट चली गई
मुजफ्फरपुर में कांटी के काेठिया निवासी टुनटुन राम ने बताया, “उनका 5 वर्ष केबेटेको बुखार हुआतो भर्ती कराया. जान बच गई,लेकिन आंखोंकी राेशनी चली गई.“साहेबगंज के माेरहार की हेमांती देवी 6 वर्ष के बच्चे के साथ अस्पताल में हैं. दाे दिन पहले ही बेटे की तबीयत बेकार हुई थी. यहां लाने पर पहले आईसीयू में भर्ती कराया गया,लेकिनग्लूकाेज चढ़ाने के साथ हाेश आते ही सामान्य वार्ड में ट्रांसफर कर दिया गया. वह न ताे कुछ समझ पा रहा है औरन ही बाेल पा रहा है. ऐसे कई बच्चेहैं, जिन पर अभी प्रशासन की नजर ही नहीं जा रही.
5 वर्ष में सरकार केन बयान बदले, न हालात
- बिहार में 2014 में बच्चों की मौतें हुईं तो 22 जून 2014 कोपटना आए तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ। हर्षवर्धन ने यहां 100 बेड का अलग अस्पताल बनाने का वादा किया था.
- अब मस्तिष्क ज्वर से फिर लगातार दशा बिगड़े तो 5 वर्ष बाद यानी16 जून 2019 केंद्रीय मंत्री डॉ। हर्षवर्धन ने वादा दोहराया. उन्होंनेशोध की बात फिर कही. 100 बेड के अस्पताल व शोध की बात दोहराई.