असम में गैरकानूनी रूप से रह रहे सात रोहिंग्या प्रवासियों को वापस लौटने की ख़्वाहिश की ‘पुष्टि’ किए जाने व म्यामांर की गवर्नमेंट की ‘पूर्ण सहमति’ से उन्हें वापस भेजा गया। यह जानकारी विदेश मंत्रालय ने गुरुवार को दी।
सुप्रीम न्यायालय द्वारा सात गैरकानूनी प्रवासी रोहिंग्या को म्यामांर पहली बार वापस भेजे जाने की अनुमति दिए जाने के बाद विदेश मंत्रालय ने बयान जारी किया। उच्चतम कोर्ट ने एक रोहिंग्या की याचिका खारिज कर दी जिसमें उसने केंद्र द्वारा वापस भेजे जाने पर रोक लगाने की मांग की थी। न्यायालय के आदेश के तुरंत बाद संबंधित अधिकारियों ने सात गैरकानूनीप्रवासियों को वापस भेज दिया जो 2012 में हिंदुस्तान में घुसे थे।
इस मुद्दे पर सवालों का जवाब देते हुए विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा,‘वापस भेजे जाने की उनकी ख़्वाहिश की पुष्टि करने (तीन अक्टूबर 2018 को) व म्यामांर गवर्नमेंटकी पूरी सहमति सेअसम की गवर्नमेंट ने इन सात लोगों को म्यामांरवापस भेजने का प्रबंध किया।
उन्होंने बोला कि यहां म्यामांरके दूतावास ने एमईए के योगदान से उस राष्ट्र में इन लोगों की पहचान स्थापित की। कुमार ने बताया कि म्यामांरकी गवर्नमेंट ने इन लोगों को रखाइन प्रांत में उनके घर तक यात्रा सुविधा के लिए पहचान का प्रमाण लेटर भी जारी किया है।
कुमार ने कहा,‘लोगों ने 2016 में आग्रह किया था कि म्यामांरके दूतावास को उन्हें संबंधित यात्रा दस्तावेज जारी करना चाहिए ताकि वे अपने राष्ट्र लौट सकें। ’ म्यामांर के रखाइन प्रांत के सात लोगों को 2012 में विदेशी कानून उल्लंघन मामले में गिरफ्तार किया गया था।