अपने फ्लैट की बालकनी से पक्षियों को इसलिए नहीं खिला सकता कोई व्यक्ति, सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई व्यक्ति अपने फ्लैट की बालकनी से पक्षियों को इसलिए नहीं खिला सकता, क्योंकि यह सोसायटी में रहने वाले अन्य लोगों के लिए परेशानी का कारण बनता है। साथ ही शीर्ष अदालत ने मुंबई में रहने वाली महिला की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। जस्टिस यूयू ललित और इंदू मल्होत्रा की पीठ ने कहा कि अगर आप एक रिहायशी सोसायटी में रहते हैं तो आपको नियमों के अनुसार ही व्यवहार करना होगा।

याचिकाकर्ता जिगीषा ठाकोर की ओर से पेश हुए वकील ने मामला पक्षियों से होने वाली परेशानी का नहीं, बल्कि दोनों पक्षों के बीच तनावपूर्ण संबंधों का है, जिसके कारण उनकी मुवक्किल के खिलाफ निचली अदालत में केस दायर किया गया। पीठ ने अपने हालिया आदेश में कहा कि निचली अदालत ने 27 सितंबर, 2013 को अंतरिम आदेश देते हुए महिला द्वारा पक्षियों को खिलाने पर रोक लगा दी थी।

यहां तक कि बांबे हाईकोर्ट ने भी निचली अदालत के आदेश में दखल देने से इनकार करते हुए उनकी याचिका खारिज कर दी थी। इन हालातों में हम मामले में कोई दखल नहीं दे सकते हैं। इसके साथ ही कोर्ट ने निचली अदालत को मामला जल्द से जल्द निपटाने का आदेश दिया।

बीट, कचरे से परेशान परिवार पहुंचा था कोर्ट

सोसायटी की 10वीं मंजिल पर रहने वाले दिलीप शाह और मीना शाह ने 2011 में निचली अदालत में केस दायर किया था। उनका कहना था कि 14वीं मंजिल पर रहने वाली जिगीषा ठाकोर पक्षियों को बालकनी में खाना खिलाती हैं, जिससे पक्षियों की बीट और कचरा अन्य लोगों की बालकनी में गिरता है। सोसायटी कई बार जिगीषा को कहीं ओर पक्षियों को खिलाने का अनुरोध कर चुकी है, इसके बावजूद उन्होंने बालकनी पर लोहे का बड़ा चबूतरा बना रखा है। इस पर पूरे दिन पक्षी बैठे रहते हैं।

व्यापारिक संबंधों को बताया विवाद का कारण 

जिगीषा ने कोर्ट को बताया कि वह एक एनजीओ से जुड़ी हैं और पशु कल्याण कार्यकर्ता हैं। शाह उनके एनजीओ में मेडिकल और सर्जिकल उपकरण सप्लाई करते थे, लेकिन किन्हीं कारणों से उनके व्यापारिक संबंध तनावपूर्ण हो गए। इसी वजह से शाह ने पक्षियों का बहाना बनाकर उनके खिलाफ केस दायर किया है।