अजीब है इस शहर का किस्सा जहाँ प्लास्टिक की बोतलों के बजाय तांबे के लोटों में बिकता है पानी

भारत में एक ऐसा शहर बसता है जहां आज लोगों को प्लास्टिक की बोतलों में नहीं बल्कि तांबे के लोटे में पानी मिल रहा है।ये शहर कोई और नहीं बल्कि मध्य प्रदेश की व्यावसायिक नगरी इंदौर है।यहां के कई इंस्टीटयूट ऐसे हैं जहां पीने के लिए पानी प्लास्टिक की बोतलों की बजाय तांबे के लोटों में दिया जाने लगा है।इसे देखते हुए पुलिस थानों में भी इस व्यवस्था को धीरे -धीरे शुरू कर दिया गया है।

पुलिस के उप महानिरीक्षक के कार्यालय में प्लास्टिक की बोतल में पानी की आपूर्ति को पूरी तरह प्रतिबंधित किया जा चुका है।

यहां तांबे के बर्तन में पानी में दिया जा रहा है।

शहर को स्वच्छ और डिस्पोजल मुक्त बनाने के लिए नगर निगम की ओर से कई स्थानों पर बर्तन बैंक बनाया है।

जहां पर तांबे और स्टील के बर्तन रखवाएं गये है।

पुलिस अधीक्षक (मुख्यालय) सूरज वर्मा का कहना है कि शहर तीन साल से स्वच्छता में नंबर वन है और शासन की नीति है कि प्लास्टिक आइटम का उपयोग न किया जाए तो उसी के तहत तांबे के लोटे रखवाए गए हैं।

जन विकास सोसायटी के डायरेक्टर फादर रोई थॉमस का कहना है कि इंदौर को डिस्पोजल और प्लास्टिक फ्री बनाने की मुहिम एक और सार्थक पहल है, जो इंदौर को नई पहचान दिलाने में मददगार होगा।

इसी तरह पर्यावरण संरक्षण के लिए आईआईएम इंदौर ने बड़ा कदम उठाया है।

प्रबंधन ने कैंपस में प्लास्टिक की बोतल पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाया जा चुका है।

अब न तो आईआईएम के छात्र, न शिक्षक और न ही नन टीचिग स्टाफ पीने के लिए प्लास्टिक की बोतल का उपयोग कर रहा है।

अब तो आईआईएम के आयोजनों में भी मेहमानों को भी बोतल बंद पानी नहीं दिया जा रहा।

सभी को पीतल की बोतल और कांच के गिलास में पानी दिया जा रहा है।

वहीं छात्रों को कागज या कांच के गिलास में पानी दिया जा रहा है।

प्रबंधन की तैयारी है कि धीरे-धीरे प्लास्टिक की अन्य वस्तुओं पर भी रोक लगाई जाए।

संस्थान से मिली जानकारी के अनुसार, पर्यावरण बचाने के लिए यह अहम कदम उठाया गया है।

संस्थान में प्लास्टिक का उपयोग पूरी तरह बंद हो इसके लिए प्रयास जारी है।

बताया गया है कि आईआईएम ने हरियाली को लेकर भी एक निर्णय लिया है और तय किया गया है कि मीटिग, सेमिनार, वर्कशॉप या किसी भी कार्यक्रम के लिए कोई मेहमान परिसर में आएगा तो उनसे एक पौधा जरूर लगवाया जाएगा।

पौधे पर मेहमान के नाम का बोर्ड भी लगेगा।

इससे पहले नगर निगम भी शहर को डिस्पोजल फ्री बनाने की मुहिम के तहत ‘बर्तन बैंक’ बना चुका है।

जो व्यक्ति अपने आयोजनों में डिस्पोजल बर्तनों का उपयोग नहीं करता, उसे इस बैंक से स्टील के बर्तन उपलब्ध कराए जा रहे हैं, जिनका उन्हें कोई किराया नहीं देना होता।

नगर निगम ने यह बर्तन बैंक एक गैर सरकारी संगठन बेसिक्स के साथ शुरू किया है।

इस बैंक को संबंधित व्यक्ति को बताना होता है कि उसने डिस्पोजल बर्तन का उपयोग न करने का फैसला लिया है।

लिहाजा, उसे बर्तन उपलब्ध कराए जाएं।

इंदौर के लिए यह मुकाम हासिल करना आसान नहीं था। साल 2011-12 में इंदौर सफाई के मामले में 61वें स्थान पर था।

पहले कभी इंदौर भी अन्य शहरों की तरह हुआ करता था।

यहां जगह-जगह कचरों के ढेर का नजर आना आम था।

वर्ष 2015 के स्वच्छता सर्वेक्षण में 25वें स्थान पर रहा इंदौर अब नंबर-एक पर पहुंच गया है।

अब यहां का हर नागरिक स्वयं इतना जागरूक है कि वह कचरे के लिए कचरा गाड़ी का इंतजार करता है।

350 से ज्यादा छोटी कचरा गाड़ियां पूरे शहर में घूमती रहती हैं।

नगर निगम और स्थानीय लोगों के प्रयास से इंदौर की स्थिति धीरे-धीरे बदलीं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के ‘स्वच्छ सर्वेक्षण 2017’ में देश में इंदौर को पहला स्थान मिला, तो उसके बाद इंदौर ने

कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।