सीलिंग से पहले 48 घंटे का नोटिस क्यों जरूरी?

सीलिंग मसले पर हो रही सुनवाई के दौरान सुप्रीम न्यायालय ने यह सवाल उठाया कि सीलिंग की कार्रवाई से पहले 48 घंटे का नोटिस दिया जाना क्यों महत्वपूर्ण है?
Image result for दिल्ली के रिहायशी इलाकों में चल रही फैक्ट्रियों

केंद्र गवर्नमेंट की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल(एएसजी) एएनएस नादकर्णी ने न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ से बोला कि शीर्ष न्यायालय ने पूर्व में बोला था कि डिफॉल्टर को 48 घंटे पूर्व नोटिस दिया जाना चाहिए, जबकि सीलिंग को लेकर न्यायालय द्वारा गठित मॉनिटरिंग का कहना है कि सीलिंग से पूर्व नोटिस देने की आवश्यकता नहीं है.

एएसजी ने बोला कि प्रावधान के मुताबिक, डिफॉल्टरों को 15 दिनों का नोटिस दिया जाना चाहिए. इस पर पीठ ने कहा, अगर कोई आदमी अपने परिसर का गैरकानूनी निर्माण करता है  आप उसे 48 घंटे का नोटिस देते हैं, ऐसे में तो वह आदमी गैरकानूनी निर्माण हटा लेगा.

पीठ ने नादकर्णी से सवाल किया कि गैरकानूनी और अनधिकृत निर्माण करने वालों के विरूद्ध कार्रवाई करने से 48 घंटे पूर्व नोटिस क्यों दिया जाना चाहिए? जवाब में नादकर्णी ने बोलाकि डिफॉल्टर कानून के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकते. एक बार नोटिस देने का मतलब है कि गैरकानूनी निर्माण के विरूद्ध कार्रवाई होगी.

इस पर पीठ ने बोला कि इस तरह कार्य नहीं चल सकता. पीठ ने प्रसव पूर्व लिंग परीक्षण करने वाले डाइग्नोस्टिक सेंटर के मसले का जिक्र करते हुए बोला कि अगर ऐसे मामलों में पूर्व नोटिस दिया गया तो कोई भी पकड़ा नहीं जाएगा. सेंटर के मालिक वहां से मशीन हटा लेंगे. जिसके बाद एएसजी ने बोला कि वह इस विषय में हलफनामा दायर कर जवाब देंगे.

पीठ ने एएसजी को साथ ही नोटिस जारी करने की प्रक्रिया भी बताने के लिए बोला है. इस मामले पर अब अगली सुनवाई 23 अक्टूबर को होगी.