मेघालय में ड्रॉपआउट रेट घटाने में मदद मिली
उदाहरण के लिए मेघालय में स्पार्क के युवाओं ने पाया कि स्कूल तो बहुत हैं, लेकिन एजुकेशन का स्तर अच्छा नहीं है. ड्रॉपआउट रेट काफी था. कहीं-कहीं तो 45 से 50 फीसदी तक.दस फीसदी स्कूलों में बिल्डिंग नहीं थी. 30 फीसदी में शौचालय नहीं थे. प्रदेश के 113 अरब रुपयों के बजट में एजुकेशन पर खर्च के लिए केवल 15 अरब थे. ट्रस्ट के लोगों ने एजुकेशनके एरिया में कार्य कर रहे भारती फाउंडेशन जैसे एनजीओ से संपर्क किया. उन्होंने सांसद निधि से पैसे जुटाए व लोकल प्रशासन के साथ मिलकर 50 स्कूलों में बिल्डिंग से लेकर अन्य संसाधन जुटाए. इसके बाद स्कूलों में ड्रॉपआउट रेट घट गया व एजुकेशन का स्तर बेहतर हुआ.
ओडिशा में सिखाई मछली पालन की आधुनिक तकनीक
ओडिशा के बोलांगीर जैसे अकालग्रस्त इलाके में स्पार्क के फेलो सिद्धांत पांडा ने पाया कि लोगों के पास आय के साधन नहीं थे, वर्षा के अभाव में खेती लगातार बेकार हो रही थी.फ्लोराइड की अधिकता से पीने योग्य पानी नहीं था व लोग बीमार थे. टाटा ट्रस्ट ने तालाबों की हालत सुधारने के लिए पांच करोड़ रुपये दिए. एमबीए कर चुके पांडा ने सांसद निधि व चाचा ट्रस्ट के पैसों से तालाबों की सफाई, खुदाई करवाई व किसानों को मछली पालन की नवीनतम तकनीक सिखाई. दो वर्षों में वहां पेयजल समस्या तो दूर हुई ही, गरीबी से भी निजात मिली.
सांसद सिंहदेव का था आइडिया
स्पार्क योजना बोलांगीर के सांसद कलिकेश सिंहदेव का आइडिया था. 2009 में पहली बार संसद पहुंचे सांसदों के एक दौरे में अमेरिकी सीनेट जॉन केरी से मिले. वहां अधिकांश कार्ययुवा इंटर्न करते दिखाई दिए. तभी उन्होंने टाटा ट्रस्ट से बात कर यह प्रोग्राम प्रारम्भ कराया.
ये सांसद भी चला रहे कार्यक्रम
स्पार्क फेलो डुमरियागंज के सांसद जगदंबिका पाल के साथ, हमीरपुर (हिमाचल) के सांसद अनुराग ठाकुर, कलियाबोर (असम) के सांसद गौरव गोगोई जैसे कई सांसदों के साथ अलग-अलग प्रोग्राम चलाए जा रहे हैं.