दो मार्च को रेप के दोषी टीचर को होगी फ़ांसी दी सजा

मध्य प्रदेश के सतना ज़िला एवं सत्र न्यायालय ने अध्यापक महेंद्र सिंह गोंड को चार साल की बच्ची का अपहरण कर रेप करने का दोषी पाते हुए फांसी की सज़ा सुनाई थी. सत्र न्यायालय ने 19 सितंबर 2018 में महेंद्र को फांसी की सज़ा सुनाई थी.

जिसके बाद इस फ़ैसले को अवलोकन के लिए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट भेज दिया गया था. हाई कोर्ट ने 25 जनवरी 2019 में सत्र न्यायालय के फ़ैसले पर मुहर लगा दी और अब चार फ़रवरी को सत्र न्यायालय ने फांसी की तारीख़ तय कर दी है.

महेंद्र सिंह गोंड को 2 मार्च के दिन फांसी होनी है.

महेंद्र को जबलपुर जेल में दो मार्च 2019 को फांसी दी जाएगी. महेंद्र सिंह गोंड पर आईपीसी की धारा 376(a)(b) के तहत फ़ैसला सुनाया गया. इसके अलावा उन पर आईपीसी की ही धारा 363 (अपहरण) के तहत भी सुनवाई की गई थी.

बता दें कि कानून 12 साल से कम उम्र के बच्चों के साथ रेप के मामले में अधिकतम मृत्युदंड का प्रावधान है.

लेकिन क्या ये फांसी हो पाएगी?

ये सवाल कोर्ट के फ़ैसले पर नहीं है. बल्कि क़ानूनी दांव-पेचों को लेकर है.

क्या हैं ये दांव-पेंच?

महेंद्र सिंह गोंड का मामला हो या ऐसा ही कोई भी दूसरा मामला. फैसले के बाद ऐसे मामले में आरोपी सुप्रीम कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट में ही समीक्षा याचिका और अंत में राष्ट्रपति के पास जा सकता है.

दिल्ली हाई कोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता रेबेका जॉन कहती हैं “अभियुक्त सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी (स्पेशल लीव पेटिशन्स) डाल सकता है. अगर सुप्रीम कोर्ट उसे भी ख़ारिज कर दे तो वो समीक्षा याचिका डाल सकता है और इसके बाद वो राष्ट्रपति के पास दया याचिका भी डाल सकता है.”

रेबेका कहती हैं कि मृत्युदंड देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट बहुत वक़्त लेता है. ज़्यादातर मामलों में सुप्रीम कोर्ट मृत्यदंड को आजीवन कारावास में तब्दील कर देता है. बहुत कम मामलों में ही सुप्रीम कोर्ट मृत्युदंड देता है.

हालांकि महेंद्र की ओर से अभी तक सुप्रीम कोर्ट में याचिका नहीं डाली गई है लेकिन उनके वकील वी सी राय का कहना है कि वो आने वाले एक-दो दिन में याचिका दायर कर देंगे.

वी सी राय बताते हैं “हालांकि हमने अभी तक याचिका नहीं दायर की है लेकिन जल्दी ही कर देंगे और हमें पूरा यक़ीन है कि सुप्रीम कोर्ट मृत्युदंड के फ़ैसले पर रोक लगा देगा.”

वो कहते हैं “मुझे पूरा यक़ीन है कि सुप्रीम कोर्ट इस फ़ैसले पर रोक लगा देगा. हम कोर्ट में उस सीसीटीवी फ़ुटेज को भी पेश करेंगे जिसे सत्र न्यायालय और हाई कोर्ट ने ख़ारिज कर दिया.”

लेकिन इस सीसीटीवी फ़ुटेज में है क्या?

इस सवाल के जवाब में वी सी राय कहते हैं कि सीसीटीवी से पता चलता है कि जिस दिन यह घटना हुई, मेरा मुवक्किल जेल में था.

लेकिन जब हमने उनसे इससे जुड़ी और जानकारी मांगी तो वी सी राय ने कहा कि उन्हें सिर्फ़ इतना ही पता है, इससे ज़्यादा नहीं.

लेकिन वरिष्ठ अधिवक्ता अनुजा कपूर इस पूरे मामले को अलग तरह से देखती हैं.

वो कहती हैं “ये सही है कि अभियुक्त के पास अभी कुछ मौके हैं लेकिन फांसी की इसमें ज़्यादा से ज़्यादा उम्रकैद में ही तब्दीली की राहत मिलेगी, उससे ज़्यादा नहीं.”

बकौल अनुजा, “चूंकि यह पोक्सो का मामला है और बच्ची की उम्र 12 साल से भी कम है तो सुप्रीम कोर्ट इस मामले को बहुत गंभीरता से लेगा. हालांकि वो भी रूबेका की बात का समर्थन करती हैं कि अभी सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति के पास जाने का विकल्प है. हालांकि उन्हें इस बात की पूरी उम्मीद है कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट मृत्यदंड को ही आगे भी जारी रखेगा.”

बच्चों के साथ रेप और क़ानून में संशोधन

बीते साल पॉक्सो यानी (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्डर्न फ्रॉम सेक्सुअल अफेंस एक्ट) में कई संशोधन किए गए. जिसके बाद अब 12 साल तक के बच्चों के साथ यौन अपराध की स्थिति में अपराधी को अधिकतम फांसी की सज़ा सुनाई जा सकती है. ऐसे अपराधियों के लिए कम से कम 20 साल तक की सज़ा का प्रावधान है.

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ने 2015 के जो आंकड़े जारी किए उसमें महिलाओं के ख़िलाफ़ रेप के सबसे अधिक मामले मध्य प्रदेश में ही दर्ज हुए थे. एनसीआरबी के मुताबिक 2015 में देश भर में 34,651 रेप के मामले दर्ज हुए जिनमें सबसे ज्यादा 4,391 मध्य प्रदेश में रिपोर्ट हुए थे जो कुल आंकड़े का क़रीब 12.7 फ़ीसदी था.

संशोधन के बाद बढ़े हैं फ़ांसी की सज़ा के मामले

सज़ा की बात तब आती है जब बलात्कार के मामलों पर फैसला आए. पिछले 10 साल में भारत में बलात्कार के 2 लाख 78 हज़ार से अधिक मामले दर्ज हुए हैं.

इंडिया स्पेंड की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2016 में बलात्कार के चार में से सिर्फ एक ही मामले में अपराधियों पर दोष साबित हुआ, यानी 75 प्रतिशत मामले में आरोप के घेरे में आए लोग छूट गए. 2007 से लेकर 2016 तक दोष साबित होने की दर 30 फीसदी तक भी नहीं पहुंच पाई है.

नेशनल लॉ स्कूल की रिपोर्ट के मुताबिक बाल यौन शोषण के अपराधों में अपराधियों के छूट जाने की दर काफ़ी ज़्यादा है.

वहीं इंडियन एक्सप्रेस ने नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी दिल्ली के एक प्रोजेक्ट 39A के तहत तैयार किए गए ‘डेथ पेनाल्टी इन इंडिया: एनुअल स्टेटिस्टिक्स रिपोर्ट 2018’ के हवाले से लिखा है कि बच्चों के साथ रेप के मामलों में सख़्त क़ानून बनने के बाद से बीते बीस सालों में मृत्यदंड की सज़ा सुनाए जाने के फ़ैसलों में बहुत इज़ाफ़ा हुआ है.

“साल 2018 में अलग-अलग ट्रायल कोर्ट ने 162 मामलों में मृत्युदंड की सज़ा सुनाई. जिसमें से 22 मामले सिर्फ़ मध्य प्रदेश में सुनाए गए. इन 22 मामलों में 7 मामले 12 साल से कम उम्र के बच्चों के साथ हुए रेप से जुड़े हैं”

हालांकि बीते साल सुप्रीम कोर्ट ने मृत्यदंड के 12 मामलों की सुनवाई करते हुए उन्हें आजीवन कारावास की सज़ा में तब्दील कर दिया था.

अभियुक्त महेंद्र भी इन्हीं मामलों का हवाला देते हुए कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में या तो स्टे लगा देगा या फिर फांसी की सज़ा को कारावास में बदल देगा.

लेकिन रेप पीड़िता के वकील का क्या कहना है?

चार साल की रेप पीड़िता के वकील ब्रह्मदत्त का कहना है कि इस मामले में सबकुछ बहुत स्पष्ट है और तभी इस मामले में इतनी जल्दी फ़ैसला भी आ गया है.

वो कहते हैं “जब बच्ची की मेडिकल जांच हुई तो साफ़ हो गया कि महेंद्र ने ही बच्ची के साथ रेप किया है. डीएनए रिपोर्ट में भी स्पष्ट है कि महेंद्र ने बच्चे के साथ यौन-दुराचार किया. रेप के मामलों में सबसे बड़ा साक्ष्य यही होता है और बाद में बच्ची ने भी बयान दे दिया तो शक की कोई गुंजाइश रह नहीं जाती है.”

हालांकि वो ये ज़रूर मानते हैं कि महेंद्र के पास अभी आगे याचिका करने के लिए सुप्रीम कोर्ट है.

क्या था पूरा मामला?

ब्रह्मदत्त बताते हैं कि दोषी सतना ज़िले के परसमनिया गांव में ही अध्यापक था. 30 जून 2018 की रात को क़रीब 10 बजे वो बच्ची के घर आया था लेकिन पहली बार वो बच्ची के पिता से मिलकर लौट गया. फिर उसके कुछ देर बाद वो वहां दोबारा पहुंचा.

वो कहते हैं “कुछ देर बाद ही वो दोबारा बच्ची के घर गया. उस वक़्त बच्ची के पिता टॉयलेट के लिए गए हुए थे और बच्ची आंगन में खाट पर अकेले सो रही थी. उसने बच्ची को उठाया और उसे अपने साथ पास ही के एक खाली मैदान में लेता गया. जहां उसने उसके साथ रेप किया और बुरी तरह से घायल हालत में छोड़कर चला गया.”

“कुछ देर बाद जब बच्ची के पिता लौटे तो बच्ची को घर पर नहीं पाकर उसे खोजने में जुट गए. अगली सुबह कहीं जाकर बच्ची उन्हें मिली. उसकी अंडरगार्मेंट नहीं थी और उसके कपड़े पर खून लगा था.”

ब्रह्मदत्त कहते हैं कि बच्ची की हालत बहुत ख़राब थी. उसके जननांगों से खून आ रहा था. जिसके बाद उसे सतना के ही एक अस्पताल में भर्ती कराया गया लेकिन बाद में डॉक्टरों की सलाह पर उसे दिल्ली स्थित एम्स भेज दिया गया.

ब्रह्मदत्त ने बताया कि बच्ची की हालत पहले से बेहतर है लेकिन जो हुआ उससे पूरा परिवार मानसिक तनाव से गुज़रा. लेकिन वो क़ानूनी व्यवस्था की सराहना भी करते हैं जिसकी वजह से इस मामले में इतनी जल्दी फ़ैसला आया.