गुरुवार को मार्केट खुलते ही शेयर मार्केट व रुपए दोनों धड़ाम हो गए। सेंसेक्स 1,030 अंक गिरकर 34,000 अंक के स्तर से नीचे चला गया। ऐसा डॉलर के मुकाबले रुपया 74.45 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर जाने के कारण हुआ। मार्केट में यह नकारात्मक ट्रेंड जुलाई 2018 के बाद से लगातार बना हुआ है। जानकारों की मानें तो रुपए की कमजोरी जीडीपी की ग्रोथ रेट के लिए सबसे नकारात्मक फैक्टर है। वहीं आम आदमी को इसका नुकसान ईंधन की कीमतों में उठाना पड़ रहा है। कुलमिलाकर खर्च बढ़ने से उसकी आमदनी पर चोट हो रही है।
1-पेट्रोल-डीजल होगा महंगा
अगर अंतरराष्ट्रीय मार्केट में डॉलर के मुकाबले रुपए का गिरना जारी रहा तो यह 75 रुपए के स्तर तक जा सकता है। इससे ऑयल का आयात व महंगा होता जाएगा। यानी घरेलू स्तर पर इसका प्रभाव पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर पड़ेगा। ये व चढ़ेंगी। हिंदुस्तान संसार का तीसरा सबसे बड़ा कच्चा ऑयल आयातक है।
2- ऑयल महंगा होने से बढ़ेगी महंगाई
अगर क्रूड की कीमतें ऐसे ही बढ़ती रहीं तो राष्ट्र में पेट्रोल के साथ-साथ डीजल के दाम बढ़ेंगे, जिससे रोजमर्रा की चीजों के दाम व चढ़ जाएंगे। डीजल बढ़ने से लोकल ट्रांसपोर्ट महंगा हो जाएगा। इसका प्रभाव सभी महत्वपूर्ण चीजों के दाम मसलन साबुन, शैंपू, पेंट इंडस्ट्री पर पड़ेगा।
3- महंगा हो जाएगा किराया
क्रूड महंगा होने से प्राकृतिक गैस की मूल्य पर दबाव पड़ेगा। यह भी बढ़ेगी, जिससे गैस पर चलने वाली कार, ऑटो या बस से चलना व महंगा हो जाएगा। वहीं डीजल से चालित रोडवेज बसों का किराया भी बढ़ने की संभावना रहेगी।
4-तेल आयात पर पड़ेगा असर
रुपए का निर्बल होना ऑयल आयात को लगातार महंगा कर रहा है। ऑयल कंपनियों को आयात के बदले ज्यादा मूल्य चुकानी पड़ रही है। इससे उनके मुनाफे पर प्रभाव पड़ रहा है।वह ऑयल आयात कम करने पर भी विचार कर रही हैं। अगर ऐसा हुआ तो राष्ट्र में ईंधन की किल्लत भी खड़ी हो सकती है।
5-शेयर मार्केट में निवेश को लगेगा धक्का
जानकारों की मानें तो बीते एक दशक से शेयर मार्केट व रुपए के बीच सीधा ताल्लुक रहा है। रुपया मजबूत होता है तो शेयर मार्केट में भी तेजी दिखाई देती है, लेकिन इस समय एफआईआई मार्केट से पैसा लगातार निकाल रहे हैं। इस कारण भी रुपया गिर रहा है। वित्त मंत्री अरुण जेटली भी कह चुके हैं कि रुपया दो ही कारकों से टूट रहा है, ऑयल की कीमतें वडॉलर में लगातार मजबूती। अगर यह ट्रेंड बना रहा तो इससे एफआईआई बड़े पैमाने पर अपना निवेश बाहर निकालेंगे। इससे घरेलू निवेशकों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है।खासकर ब्लूचिप कंपनियों की हैसियत घटेगी, जो अंतत: राष्ट्र की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव डालेगा।