
इंडियन पुरात्तव विभाग (एएसआई) ने हालांकि गवर्नमेंट के बयान से इतर जवाब दिया है. हालिया आरटीआई के जवाब में एएसआई का कहना है कि हीरे को लाहौर के महाराजा ने इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया को सौंपा किया था. एक याचिका के जवाब में गवर्नमेंट ने बोला था कि महाराजा रणजीत सिंह के उत्तराधिकारी ने कोहिनूर को स्वैच्छिक मुआवजे के तौर पर दिया था ताकि एंग्लो-सिख युद्ध के खर्चे की पूर्ति हो सके.
कार्यकर्ता रोहित सबरवाल ने एक आरटीआई दाखिल करके सूचना मांगी कि किस आधार पर कोहिनूर को ब्रिटेन हस्तांतरित किया गया. उन्होंने कहा, ‘मुझे कोई जानकारी नहीं थी कि अपने आरटीआई आवेदन के लिए किसे अप्रोच करुं, इसलिए मैंने इसे पीएम ऑफिस (पीएमएओ) भेज दिया. पीएमएओ ने इसे एएसआई को भेज दिया.‘ अपनी आरटीआई में उन्होंने पूछा कि क्या हीरा इंडियन अधिकारियों द्वारा ब्रिटेन को दिया तोहफा था या इसे किसी व करण की वजह से हस्तांतरित किया गया था.
एएसआई ने जवाब में लिखा, ‘रिकॉर्ड्स के अनुसार लॉर्ड डलहौजी व महाराजा दिलीप सिंह के बीच 1849 में लाहौर संधि हुई थी. लाहौर के महाराजा ने इंग्लैंड की महारानी को कोहिनूर सौंपा किया था.‘ जवाब में संधि के एक उद्धरण को दिया गया है. जिसके अनुसार, ‘कोहिनूर जिसे कि शाह-सुजा-उल-मुल्क से महाराजा रणजीत सिंह ने लिया था, उसे लाहौर के महाराजा इंग्लैंड की महारानी को सौंपा करेंगे.‘ जवाब के अनुसार संधि से यह साफ हो जाता है कि कोहिनूर को दिलीप सिंह की इच्छानुसार अग्रेंजों को सौंपा नहीं किया गया था. इसके अतिरिक्तसंधि के समय दिलीप सिंह केवल 9 वर्ष के थे.