
वह कह रहे थे, ‘दादा मेडिकल निए चलो (भाई, मुझे अस्पताल लेकर चलो). उन्हें सांस लेने में कठिनाई हो रही थी. वह बार बार पानी मांग रहे थे.‘ हालांकि सुनील ने अपने भाई को अस्पताल ले जाने के लिए सरल उपाय सोचा था. उनके बेटे ने अपने दोस्त को फोन कर ऑल्टो गाड़ी मंगवाई. लेकिन इसमें भी 10-15 मिनट का समय लग जाता. इसके बाद उन्होंने ठेले पर सुबल को लिटाया व अस्पताल की ओर भागे. उन्हें उम्मीद थी कि रास्ते में कोई गाड़ी मिल जाएगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. बाद में सुबल दास की भी मौत हो गई.
सुनील दास का परिवार उस स्थान से बहुत ज्यादा दूर रहता है जहां लोगों को गोली मारी गई. 5 लोगों को गोली मारी गई थी. सुनील कहते हैं गांव की पंचायत में भी 6 ग्रामीण हैं. जिनमें आदिवासी, नेपाली, असमिया व बंगाली हैं. कभी किसी समुदाय के बीच प्रयत्न नहीं हुआ.
घटना के बाद विभिन्न संगठनों की अपील पर शनिवार को 24 घंटे के असम बंद की वजह से राज्य में सामान्य जनजीवन अस्त-व्यस्त रहा. गुवाहाटी में तो बंद का खास प्रभाव नहीं नजर आया. लेकिन बराक घाटी के बांग्लाभाषी बहुल इलाकों में इसका बहुत ज्यादा प्रभाव रहा.